टीईटी विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा निर्णय, शिक्षकों को मिली राहत, कोर्ट का आदेश रद्द TET Teacher Big News

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TET Teacher Big News: शिक्षक पात्रता परीक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम निर्णय सुनाया है जिसके तहत उन शिक्षकों को राहत दी गई है जिन्होंने सेवा के दौरान पात्रता परीक्षा पास की थी लेकिन विभाग ने यह कहते हुए उन्हें सेवा से अलग कर दिया था कि चयन के समय वे पात्र नहीं थे सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि किसी शिक्षक ने निर्धारित समय सीमा के भीतर पात्रता परीक्षा पास कर ली है तो उसे अयोग्य नहीं माना जा सकता अदालत ने कहा कि बदले हुए नियमों और बढ़ाई गई समय सीमा के अनुसार सेवा के दौरान परीक्षा पास करना पर्याप्त है इसलिए दोनों शिक्षकों को सेवा में बने रहने का अधिकार है यह फैसला उन सभी शिक्षकों के लिए उम्मीद का संकेत है जो समान परिस्थितियों से गुजर रहे हैं।

कानपुर के दो शिक्षकों को मिली सुप्रीम कोर्ट से राहत

कानपुर के ज्वाला प्रसाद तिवारी जूनियर हाई स्कूल के दो सहायक शिक्षकों को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है ये दोनों शिक्षक शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद सेवा में आए थे और शुरुआत में शिक्षक पात्रता परीक्षा पास नहीं की थी बाद में दोनों ने कार्यकाल के दौरान परीक्षा पास की लेकिन विभाग ने यह कहते हुए उन्हें सेवा से अलग कर दिया कि चयन के समय उनके पास प्रमाण पत्र नहीं था सुप्रीम कोर्ट ने माना कि नए नियमों के अनुसार 31 मार्च 2019 तक परीक्षा पास करने की अनुमति थी इसलिए ऐसे शिक्षकों को अयोग्य मानना गलत है अदालत ने दोनों की सेवा पुनः जारी रखने का निर्देश दिया है जिससे प्रदेश के कई शिक्षकों को राहत की उम्मीद जगी है।

शिक्षकों की सेवा समाप्त करने का आदेश रद्द

सुप्रीम कोर्ट ने दोनों शिक्षकों की सेवा समाप्त करने के आदेश को निरस्त कर दिया है साथ ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय की खंडपीठ और एकलपीठ के फैसले को भी खारिज कर दिया गया है अदालत ने दोनों शिक्षकों को तत्काल प्रभाव से पुनः सेवा में शामिल करने का निर्देश दिया है हालांकि उन्हें बकाया वेतन का भुगतान नहीं किया जाएगा लेकिन उनकी सेवा को निरंतर मानते हुए पद और अनुभव में कोई हानि नहीं होगी सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि बर्खास्तगी के समय दोनों शिक्षक पात्रता परीक्षा पास कर चुके थे इसलिए उन्हें अयोग्य मानना न्यायसंगत नहीं है यह फैसला शिक्षा प्रणाली में पारदर्शिता और न्याय के दृष्टिकोण से एक मिसाल के रूप में देखा जा रहा है।

पूरा मामला और सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण

राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद ने अगस्त 2010 में यह अनिवार्य किया था कि कक्षा एक से आठ तक पढ़ाने वाले शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा न्यूनतम योग्यता होगी जिसके तहत राज्य सरकारों को अपने स्तर पर परीक्षा आयोजित करनी थी उत्तर प्रदेश में नवंबर 2011 में पहली बार यह परीक्षा कराई गई थी कानपुर के सहायताप्राप्त विद्यालय में सहायक शिक्षक के चार पदों के लिए आवेदन मंगाए गए थे दोनों याचियों ने आवेदन कर परीक्षा पास की और मई 2012 में सेवा शुरू की इसके बाद एक शिक्षक ने 2014 में परीक्षा पास की 2017 में आरटीई अधिनियम में संशोधन के बाद 31 मार्च 2019 तक परीक्षा पास करने की समय सीमा तय की गई थी इसके बावजूद मार्च 2018 में विभाग ने दोनों शिक्षकों को सेवा से अलग कर दिया था जिसे बाद में उन्होंने न्यायालय में चुनौती दी सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में निर्णय देते हुए स्पष्ट किया कि जिन्होंने निर्धारित समय में पात्रता परीक्षा पास कर ली थी उन्हें सेवा से हटाया नहीं जा सकता इस फैसले को शिक्षा जगत के लिए ऐतिहासिक माना जा रहा है क्योंकि इससे अनेक शिक्षकों को न्याय मिलने का मार्ग खुला है।